भारत में पिछले 15-20 वर्षो में गिद्धों की संख्या लगभग 95 प्रतिशत नष्ट हो चुकी है। दो दशक पहले तक देश में 950 लाख गिद्ध थे। अब उनकी संख्या 3,000 से 4,000 तक ही रह गई है। देश में नौ प्रकार की गिद्ध प्रजातियां पाई जाती हैं। ये हैं, ओरियंटल व्हाइट, बैक्ड गिद्ध (जिप्स बेन्गालेंसिस), स्लेंडर बिल्ड गिद्ध (जिप्स टेन्यूरोस्टिस), लॉग बिल्ड गिद्ध (जिप्स इंडीकस), इजिप्टियन गिद्ध, (निओफ्रॉन पर्सनोप्टेरस), रेड हेडड गिद्ध (सर्कोजिप्स काल्वस), इंडियन गिफ्रान गिद्ध (जिप्स फल्वस), हिमालयन गिफ्रान (जिप्स हिमालेन्सिस), सिनेरस गिद्ध (आरजीपियस मोनाकस) और बेयर्डेड गिद्ध यान लेमर्जियर (जिपैटस बारबाटस)। प्रकृति के सफाईकर्मी कहे जाने वाले गिद्ध की ये प्रजातियां धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही हैं। गिद्धों की नौ जातियों में से तीन जातियों के गिद्ध यानी व्हाइट बैक्ड गिद्ध, स्लेंडर बिल्ड गिद्ध और लॉग बिल्ड गिद्धों की संख्या पिछले दशक के पूर्व से ही तेजी से घट रही है। बीएनएचएस सर्वेक्षण जांच के आधार पर स्लेंडर बिल्ड गिद्धों की संख्या लगभग 1000, व्हाइट बैक्ड लगभग 1000 और लॉन्ग बिल्ड गिद्धों की संख्या 2000 तक होने का अनुमान है। भारत में जिप्स जीनस की संख्या 2005 तक 97 प्रतिशत तक घट चुकी है। बढ़ते शहरीकरण, खेतों में कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल, बढ़ते प्रदूषण और बड़े स्तर पर गिद्धों के शिकार जैसे कई कारण हैं, जिनसे यह प्राणी अब लुप्त होने की कगार पर है। हिंदुओं के धर्मग्रंथ रामायण में दो गौण देवताओं जटायु और संपाती के रूप में दो गिद्धों का वर्णन किया गया है। दोनों नाम साहस और बलिदान की कहानियों से जुड़े हुए हैं। जब वे छोटे थे तो आकाश में ऊंची उड़ान भरने के लिए उन दोनों के बीच अक्सर प्रतिस्पर्धा होती थी। ऐसा ही एक दृष्टांत इस प्रकार है- एक बार जटायु आकाश की इतनी ऊंचाई तक पहुंच गए कि सूर्य से निकलने वाली लपटें उन्हें झुलसाने लगीं। ऐसे में संपाती ने अपने पंखों को फैलाकर छाया की और इस प्रकार सूर्य की गरम लपटों से अपने भाई को बचाया। यह वही जटायु थे, जिन्होंने भगवान राम को यह जानकारी दी थी कि दुष्ट रावण किस दिशा की ओर सीता का हरण करके उन्हें ले गया है। गिद्ध केवल भारत से ही नहीं, बल्कि कई अन्य देशों से भी लुप्त हो रहे हैं। पर्यावरण संतुलन में इनकी एक व्यापक भूमिका है। गिद्धों में विशेष लक्षण उनका पंखरहित गंजा सिर होता है। उघड़ी चमड़ी ताप नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ये हृष्ट-पुष्ट शारीरिक गठन वाले होते हैं और इन्हें प्रकृति का निजी सफाईकर्मी दल माना जा सकता है। मृत जीव गिद्धों की एक खास प्रकार की खुराक हैं और इन्हें खाकर अपनी भूख शांत करने की इनकी आदत जानवरों और मानवों में संचारी रोगों के फैलाव को रोकने में महत्वपूर्ण संपर्क है। दैवी घटनाओं जैसे बाढ़ और सूखे के दौरान जानवरों की मौत होने पर गिद्ध इन मृत जानवरों को खाकर धरती की सफाई करते हैं तथा इस प्रकार सड़े-गले शवों से फैलने वाले घातक कीटाणुओं के फैलाव को रोकते हैं। पौराणिक कथाओं में गिद्ध की तुलना युगल प्रेमियों से की जाती है, क्योंकि ये पक्षी सदा जोड़े में दिखाई देते हैं, मानो स्नेह की डोर में बंधे हुए हों। इन पक्षियों का आकार और आकाश में उड़ने की क्षमता जैसी उनकी विशेषताएं ही उन्हें जोड़ा बनाने, प्रेम के सूत्र में बंधने, एक-दूसरे को सुरक्षा और प्यार देने में सहायक होती हैं। डॉ. सालिम अली ने अपनी पुस्तक इंडियन बर्ड्स में गिद्धों का वर्णन भगवान की निजी भस्मक मशीन के रूप में किया है, जिसकी जगह मानव के आविष्कार से बनी कृत्रिम मशीन कभी नहीं ले सकती है। गिद्ध गर्म क्षेत्रों में सफाईकर्मी के रूप में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। गिद्धों का एक दल एक सांड़ का केवल 30 मिनट में निपटारा कर सकता है। गिद्धों की संख्या में तेजी से हो रही कमी के साथ हम खाद्य कड़ी में महत्वपूर्ण संपर्क को खोते जा रहे हैं। विज्ञान और पर्यावरण केंद्र का कहना है कि कृषि में कीटनाशक दवाओं का अधिक इस्तेमाल और डीडीटी, ऑल्डि्रन तथा डिऑल्डि्रन गिद्धों की मौत के प्रमुख कारण हैं। खाद्य कड़ी में इन रसायनों का संचय गिद्धों की प्रजनक प्रणाली को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है और अंडे के खोल को लगभग 20 प्रतिशत पतला करता है। सरकार ने अप्रैल, 2006 में भारत में गिद्ध संरक्षण के लिए एक कार्य योजना की घोषणा की थी। चरणबद्ध ढंग से डाइक्लोफेनेक के पशुचिकित्सीय इस्तेमाल पर रोक तथा गिद्धों के संरक्षण और प्रजनन केंद्र की भी घोषणा की थी, लेकिन कुछ खास नतीजा नहीं निकला और योजना कागज में ही सिमट कर रह गई। प्रथम गिद्ध संरक्षण प्रजनन केंद्र जो हरियाणा के पिंजौर में और दूसरा प्रजनन केंद्र पश्चिम बंगाल के राजा भात्खावा, बुक्सा टाइगर रिजर्व में है, दोनों पहले से ही पूर्णतया संचालित हैं। असम में रानी में तीसरे केंद्र को मंजूरी दे दी गई है। इंडियन ग्रिफान सफेद पीले बाल वाले पंखों से ढके सिर के साथ पूर्णतया भूरे रंग का गिद्ध है। यह सामान्य तौर पर शहरों के आसपास देखा जाता है, लेकिन इस प्रजाति के गिद्ध भी धीरे-धीरे दुर्लभ हो रहे हैं। अगर समय रहते गिद्धों की कम होती संख्या पर ध्यान नहीं दिया गया और इन्हें संरक्षण देने का ठोस प्रयास नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी के लिए यह प्रजाति इतिहास का हिस्सा बन कर रह जाएगी।
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